दुनिया का तीसरा सबसे बड़े लोकतंत्र इंडोनेशिया फिर तानाशाही की ओर! प्रबोवो सुबिआंतो के विजयी भाषण के क्या हैं मायने?

इंडोनेशिया में हुए राष्ट्रपति चुनाव के बाद  प्रबोवो सुबिआंतो ने अपनी जीत का दावा किया है. जाकार्ता के स्टेडियम में अपना विजयी भाषण देते हुए सुबिआंतो ने ऐसी बातें की, जिससे उनकी कठोर नीतियों को लेकर संकेत मिले हैं. 72 साल के सुबिआंतो पूर्व आर्मी जेनरल और इंडोनेशिया के रक्षा मंत्री हैं. वोटों की पूरी गिनती से पहले ही उनको 60 फीसदी वोट मिल गया, जिससे चुनाव के रन ऑफ दौर में जाने की संभावना खत्म हो गई और तय हो गया कि सुबिआंतो ही राष्ट्रपति होंगे. उनके साथ जिब्रान राका उप-राष्ट्रपति होंगे जो मौजूदा राष्ट्रपति जोको विडोडो के बड़े बेटे हैं.

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इन दोनों की जीत के साथ इंडोनेशिया में तानाशाही का दौर लौटने की आशंका जतायी जा रही है. दरअसल सुबिआंतो का इतिहास इंडोनेशिया के तानाशाह सुहार्तो से जुड़ा हुआ है. सुहार्तो ने बतौर तानाशाह 32 साल तक इंडोनेशिया पर राज किया. सुहार्तो ने इतना लंबा इसलिए राज किया, क्योंकि उन्होंने चुनावों में जम कर धांधली की. सुहार्तो ने शुरुआती तौर पर डच कोलोनियल आर्मी में थे. फिर जापान प्रायोजित होम डिफेंस कोर ज्वाइन किया.

1950 में जब इंडोनेशिया रिपब्लिक बना तो सेंट्रल जावा में बटालियन कमांडर से शुरुआत कर 1966 आते आते आर्मी चीफ़ बन गए. इस बीच 30 सितंबर 1965 को इंडोनेशिया की सेना के कुछ असंतुष्ट वामपंथी अधिकारियों ने इंडोनेशिया कम्यूनिष्ट पार्टी ने मिल कर जाकर्ता की सत्ता पर काबिज़ होने की कोशिश की. इस दौरान सेना के 7 में से 6 सबसे बड़े अधिकारी मार दिए गए. सुहार्तो अकेले सबसे बड़े अधिकारी थे जो ज़िंदा बच गए. सुहार्तो ने इस तख़्तापलट की कोशिश को कुछ दिनों में नाकाम कर दिया. लेकिन फिर तख़्ता पलट की इस साज़िश के पीछे सुहार्तो का ही दिमाग माना गया. इसके बाद सुहार्तो ने कई साम्यवादी और वामपंथी नेताओं को रास्ते से हटाना शुरु कर दिया. देश भर में नरसंहार हुए, जिसमें हज़ारों लोगों की जान गई.

सुहार्तो सेना प्रमुख बन गए और 12 मार्च 1966 को इंडोनेशिया की सत्ता पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया. इंडोनेशिन कम्युनिष्ट पार्टी पर पाबंदी लगा दी और ख़ुद ही राजनीतिक और आर्थिक नीतियां तय करने लगे. 1968 में उन्होंने ख़ुद को पांच साल के लिए इंडोनेशिया का चुना हुआ राष्ट्रपति घोषित कर दिया और 30 साल तक राष्ट्रपति बने रहे. इंडोनेशिया में आर्थिक बदहाली के चलते 1998 में लोकतंत्र की लड़ाई ने ज़ोर पकड़ा और सुहार्तो को सत्ता से बेदखल होना पड़ा.

सुहार्तो जब ये सब कर रहे थे तो सुबिआंतो उनके कार्यकाल में सैन्य कमांडर थे. सुबिआंतो की शादी सुहार्तो की बेटी से हुई. इंडोनेशिया में जब लोकतंत्र के लिए लड़ाई लड़ी जा रही थी, सुहार्तो के राजनीतिक विरोधियों और लोकतंत्र की लड़ाई लड़ने वालों को सुबिआंतो की यूनिट पकड़ा, यातनाएं दीं और मारा.

अब सुबिआंतो राष्ट्रपति चुनाव जीत गए हैं. इतना ही नहीं, उनके साथ उप-राष्ट्रपति बनने जा रहे जिब्रान राका मौजूदा राष्ट्रपति जोकोवी के बेटे हैं. बेटे को उप-राष्ट्रपति बनाने के लिए जोकोवी ने सुबिआंतो के राष्ट्रपति उम्मीदवारी को पूरा समर्थन दिया. जम कर प्रचार किया. जोकोवी 2014 में पहली बार राष्ट्रपति बने और 2019 में दूसरी बार, इंडोनेशिया के संविधान के मुताबिक़ तीसरी बार राष्ट्रपति नहीं बन सकते. लेकिन जोकोवी ने 2021 में उन्होंने संविधान बदलने की कोशिश की, ताकि लंबे समय तक राष्ट्रपति बने रह सकें. लेकिन इसमें वे कामयाब नहीं हुए.

अब ये माना जा रहा है कि अपने बड़े बेटे जिब्रान को उपराष्ट्रपति बना कर वे सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखना चाहते हैं. सुबिआंतो की तानाशाही की पृष्ठभूमि और राष्ट्रपति जोकोवी की महत्वाकांक्षा को इंडोनेशिया के लोकतंत्र पर काले साए की तरह देखा जा रहा है.