मथुरा के मंदिरों में को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की बड़ी टिप्पणी


प्रयागराज:

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा के मंदिरों में वकीलों को रिसीवर बनाए जाने वाली अवमानना याचिका पर अपना फैसला सुनाते हुए कहा है कि मथुरा के मंदिरों में प्रबंधकीय विवाद के कारण वकीलों को रिसीवर नियुक्त करने से सिविल वादों का निस्तारण करने में रुचि नहीं ली जा रही. कोर्ट ने कहा कि मथुरा के मंदिरों में वकीलों में रिसीवर बनने की होड़ मची हुई है. कोर्ट ने कहा वेद शास्त्र का ज्ञान रखने वाले श्रद्धालु को मंदिरों का प्रशासन व प्रबंधन सौंपा जाना चाहिए, इससे वकीलों को दूर रखा जाए. 

हाईकोर्ट ने जिला जज को सिविल वादों के शीघ्र निपटारे के सभी प्रयास करने का निर्देश दिया है. यह आदेश जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने देवेंद्र कुमार शर्मा व‌ अन्य बनाम मथुरा की अपर सिविल जज, सीनियर डिवीजन रुचि तिवारी के खिलाफ दाखिल अवमानना याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है. इस याचिका पर सभी पक्षों की बहस पूरी होने के बाद 28 मई को कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपना महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कई टिप्पणियां कीं.

मथुरा के अधिकांश मंदिर कानूनी विवादों के पचड़े में फंसे

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश में अदालत के 28 मार्च 2023 के आदेश को रद्द करते हुए प्रकरण तय करने के लिए सिविल जज को वापस भेज दिया है. कोर्ट ने कहा है कि मथुरा के अधिकांश पुराने व प्रसिद्ध मंदिर कानूनी विवादों के पचड़े में फंसे हुए हैं. लोगों में मंदिरों का रिसीवर बनने की होड़ लगी है. ये ट्रस्ट, सेवायतों व प्रबंध समिति को मंदिर व्यवस्था नहीं करने दे रहे. अदालत से नियुक्त रिसीवर मंदिर प्रबंधन देख रहा है. 

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला जज मथुरा से विवादित मंदिरों की सूची मांगी. हाईकोर्ट व अधीनस्थ अदालतों के अधिवक्ता चंदन शर्मा ने जिला जज की रिपोर्ट दी और बताया कि मथुरा में कुल 197 मंदिर विवादों में घिरे हैं. वृंदावन, गोवर्धन, बलदेव, गोकुल, बरसाना, माठ आदि जगहों पर मंदिर स्थित हैं. कोर्ट ने कहा कि जिन मंदिरों में वकील रिसीवर हैं वे केस को तय कराने के बजाए लंबित रखने में रुचि लेते हैं. मुकदमा तय करने का कोई प्रयास नहीं करते. रिसीवर होना स्टेटस सिंबल बना हुआ है. हर कोई रिसीवर बनना चाहता है. वकीलों के पास मंदिर प्रशासन व प्रबंधन के लिए समय नहीं. वकील मुकदमा कर खुद रिसीवर बन रहे हैं.

गिरिराज मंदिर में चुनाव को लेकर विवाद 

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कमेटी को रिसीवर बनाने का आदेश दिया था लेकिन एक वकील को ही बनाया गया तो अवमानना याचिका दायर कर याची ने खुद को रिसीवर नियुक्त करने की मांग की. 18 नवंबर 1957 में गिरिराज सेवक समिति बारा बाजार, गोवर्धन पंजीकृत हुई जो गिरिराज मंदिर का प्रबंधन देखती थी. सन 1998 तक शांति से चलता रहा, इसके बाद चुनाव को लेकर विवाद शुरू हुआ. पीठासीन अधिकारी ने सन्  2000 में चुनाव को वैध घोषित किया जो सिविल वाद व याचिका में उलझता गया.

कोर्ट ने कहा कि जिला जज  द्वारा रखी गई आठ मंदिरों की सूची दर्शाती है कि राधा वल्लभ मंदिर, वृन्दावन;  दाऊजी महाराज मंदिर, बलदेव; नंदकिला नंद भवन मंदिर, गोकुल; मुखरबिंद, गोवर्धन; दानघाटी, गोवर्धन;  अनंत श्री भिभूषित, वृन्दावन और मंदिर श्री लाड़ली जी महाराज, बरसाना सभी रिसीवर्स के कब्जे में हैं और उनमें से अधिकांश का प्रबंधन मथुरा में प्रैक्टिस करने वाले वकीलों द्वारा किया जाता है.

अधिवक्ताओं के चंगुल से मुक्त कराए जाएं मंदिर

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अब समय आ गया है कि इन सभी मंदिरों को मथुरा कोर्ट के अधिवक्ताओं के चंगुल से मुक्त किया जाए और न्यायालयों को यदि आवश्यक हो तो एक रिसीवर नियुक्त करने का हरसंभव प्रयास करना चाहिए जो मंदिर के प्रबंधन से जुड़ा हो और जिसका देवता के प्रति कुछ धार्मिक झुकाव हो. उसे वेदों और शास्त्रों का भी अच्छा ज्ञान होना चाहिए. वकीलों और जिला प्रशासन के लोगों को इन प्राचीन मंदिरों के प्रबंधन और नियंत्रण से दूर रखा जाना चाहिए. मंदिर विवादों से जुड़े मुकदमों को जल्द से जल्द निपटाने का प्रयास किया जाना चाहिए और मामले को दशकों तक नहीं लटकाया जाना चाहिए.

विवादों को यथाशीघ्र निपटाने के प्रयास किए जाएं

कोर्ट ने मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए कहा कि यह अदालत जिला जज, मथुरा से अनुरोध करता है कि वे व्यक्तिगत रूप से कष्ट उठाकर अपने अधिकारियों को इस आदेश से अवगत कराएं और जिला-मथुरा के मंदिरों और ट्रस्टों से संबंधित दीवानी विवादों को यथाशीघ्र निपटाने का हरसंभव प्रयास करें. कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि मुकदमे को लंबा खींचने से मंदिरों में विवाद बढ़ रहे हैं तथा मंदिरों में अधिवक्ताओं और जिला प्रशासन की अप्रत्यक्ष भागीदारी हो रही है जो हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के हित में नहीं है. यदि मंदिरों और धार्मिक ट्रस्टों का प्रबंधन और संचालन धार्मिक बिरादरी के व्यक्तियों द्वारा न करके बाहरी लोगों द्वारा किया जाएगा तो लोगों की आस्था खत्म हो जाएगी. इस तरह की कार्यवाही को शुरू से ही रोका जाना चाहिए. 

अदालत ने कहा कि, उपरोक्त चर्चाओं के मद्देनजर सिविल जज (सीनियर डिवीजन) मथुरा द्वारा पारित 28 मार्च 2023 के आदेश को अपास्त किया जाता है और मामले को रिट कोर्ट 23 नवंबर 2021 के निर्देशों के आलोक में दो हफ्ते के अंदर नए सिरे से आवेदन पर विचार करने के लिए वापस भेजा जाता है. चूंकि आवेदक मुकदमे में पक्षकार नहीं है इसलिए रिसीवर के लिए उसके आवेदन पर विचार नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि इसलिए उपरोक्त निर्देशों के मद्देनजर अवमानना ​​​याचिका का निपटारा किया जाता है.