“राहुल गांधी का सपना पीएम बनने का और भाषा ऐसी”: मोदी सरनेम केस पर बोले हरीश साल्वे

भारत 15 अगस्त 2023 को अपनी आजादी की 76वीं सालगिरह मनाने जा रहा है. इस खास मौके पर NDTV आपके लिए इंटरव्यू सीरीज AZADI@76 लेकर आया है. AZADI@76 सीरीज के तहत NDTV के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर और एडिटर-इन-चीफ संजय पुगलिया ने भारत के पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे के साथ खास एक्सक्लूसिव बातचीत की. साल्वे ने इस दौरान न्यायपालिका में बदलाव, व्यापार में आसानी, भारत के बदलते वैश्विक कद, रेवड़ी कल्चर पर अपने विचार रखे. साल्वे ने मोदी सरनेम वाले बयान को लेकर राहुल गांधी की भाषा पर आपत्ति जाहिर की.

पढ़ें, हरीश साल्वे के साथ NDTV के एडिटर-इन-चीफ संजय पुगलिया का पूरा इंटरव्यू:-

इस समय भारत की जो तरक्की और उन्नति हो रही है, उसे लेकर दुनिया की हमारे देश के बारे में क्या राय है?

भारत को देखने का नजरिया बेशक बदला है. लोगों के रुख में बदलाव आया है. आज दुनिया के दूसरे देश भारतीयों को बड़ी इज्जत की नजर से देखते हैं. पहले ऐसी सोच थी कि ये गरीब देश हैं. तीसरी दुनिया का देश है. लेकिन अब सोच में बदलाव आया है. अब ऐसे देश हमारी तरफ देख रहे हैं. वो चाहते हैं कि भारत उनके साथ व्यापार करे. भारत अब एक नया इकोनॉमिक पावर हाउस है. भारत को लेकर दुनिया के सोचने का एंगल अब 180 डिग्री घूम चुका है. हम सभी देश समझते हैं कि उन्हें भारत के साथ मिलकर काम करना है. भारत की इमेज में ये एक क्वॉन्टम चेंज आया है.

सुप्रीम कोर्ट का वक्त होता है, जिसमें वो अपने आपको परिभाषित करता है कि वो क्या डायरेक्शन लेना चाहता है. आपकी राय में इस वक्त के माहौल में टॉप ज्यूडिशियरी का फोकस क्या है?

हमें पहले ये सोचना चाहिए कि ये इंस्टीट्यूशन क्या हैं? भारत का सुप्रीम कोर्ट, अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट, यूनाइटेड किंगडम के सुप्रीम कोर्ट या फिर कॉमनवेल्थ देश के सदस्य दक्षिण अफ्री के सुप्रीम कोर्ट से अलग है. हमारे सुप्रीम कोर्ट ने अपने न्यायिक क्षेत्र का विस्तार किया है. इससे दो चीजें होती हैं. पहला-आप एक आकांक्षा (Aspiration) पैदा कर रहे  हैं, जिसे पूरा नहीं कर पाएंगे. इसलिए आपको ऐसे बयान सुनने को मिलते हैं कि ‘देखो कोर्ट को क्या हो गया. कोर्ट तो सरकार के दबाव में है वगैरह- वगैरह…’ दूसरी चीज जजों की नियुक्ति के बारे में है. मतलब एक जज ही दूसरे जज को आगे बढ़ाएंगे, ये दुनिया में कहीं नहीं है. इसे खत्म करना चाहिए.

 पीआईएल इंडस्ट्री की बहुत सालों से बात हो रही है. कई मामलों में देखा गया है कि पीआईएल प्रोसेस का बहुत लोग गलत इस्तेमाल भी करते हैं. इसे रोकने के कोई प्रभावी कदम नहीं लिया गया है?

पीआईएल को लेकर दो दिक्कतें हैं. ये 1991 में गठबंधन सरकार में नरसिम्हा जी के समय शुरू हुआ. उनको लगा जो मुश्किल फैसले हैं, हम क्यों लें इसे कोर्ट पर छोड़ देते हैं. इसका क्लासिक उदाहरण में देता हूं. जब अयोध्या में कारसेवक पहुंच गए. पीआईएल आया तो मृणाल बनर्जी ने बेंच के सामने कहा कि हम आपके आदेश का इंतजार कर रहे थे. इसपर बेंच ने कहा कि हालात आर्मी कमांडर के आदेश पर काम करती है, न कि हमारे आदेश पर. आप फैसला करिए क्या करना है. लेकिन नरसिम्हा सरकार ने ऐसा नहीं किया. कारसेवकों के खिलाफ क्या सख्त कदम उठाना चाहिए, सरकार ने ये तय नहीं किया. वो कोर्ट के पीछे छिपना चाह रही थी. तब से यह एक माइंडसेट बन गया है. कोयला खनन पट्टा मामले में भारत की छवि बहुत खराब हुई है. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट को कोल माइनिंग की लीज कैंसिल करनी पड़ी. सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों किया, क्योंकि सरकार ने मामला उसपर छोड़ दिया.

आज की जो सरकार है वो फ्रंट फुट पर काम करती है. सरकार कहती है कि कोर्ट अपना काम करे और सरकार अपना काम करे. सोचने के तरीके में ये जो शिफ्ट आया है, वो अहम है. इंदिरा गांधी के जमाने में भी कोई पीआईएल नहीं होती थी. क्योंकि वो भी फ्रंट फुट पर आकर सरकार चलाती थीं. सही किया गलत किया, राजनीतिक फैसले लिए अपने दम पर लिए. उसी तरीके से मौजूदा सरकार अपने फैसले लेती है. अगले इलेक्शन में साफ हो जाएगा कि उनका फैसला सही था या गलत. फैसले लेकर वो सरकार तो चला रहे हैं, सरकार तो चल ही रही है.

भारत में इस वक्त विकास और वृद्धि के लिए प्राइवेट सेक्टर और अंत्रप्रेनोर की जरूरत महसूस की जा रही है. ऐसे में एंटी अंत्रप्रेनोर और एंटी बिजनेस माहौल बनाने की कोशिशें भी लगातार की जा रही हैं. पहले सोशलिस्टिक माइंडसेट था. अब वेस्टर्न इंटरेस्ट इसमें कूद गए हैं और इसे बिगाड़ने में लगे हुए हैं. इसे राजनीतिक नेतृत्व इससे कैसे निपट सकती है?

आज यही सबसे बड़ा डर है. कोई देश खुश नहीं होता कि दूसरा देश उससे आगे निकल जाए. चीन के साथ आज हमारा प्रत्यक्ष आर्थिक संघर्ष है. भारत में पहले हम बैटरी बेस इंपोर्ट करते थे. उससे निकाल कर कॉपर वगैरह बनाते थे. इसपर कोई ध्यान नहीं दे रहा था. मैं उस वक्त एसोसिएशन की ओर से लड़ रहा था. लेकिन उनको कागज मिल गया कि यूरोपियन काउंसिल में यह मामला उठा था कि अगर भारत जैसे देश बैटरी वगैरह से कॉपर निकालने लगे, तो हमारा कॉपर कौन खरीदेगा. इसपर पीआईएल आ गई. आज इंडिया के बाहर जिस किस्म की एक नैरेटिव बनाई जा रही है, वो ठीक नहीं है. भारत की अर्थव्यवस्था पर आज कोई कुछ नहीं कह सकता. लेकिन वो लोकतंत्र पर वार कर रहे हैं. कह रहे हैं कि डेमोक्रेसी इस डेड इन इंडिया (भारत में लोकतंत्र मर चुका है). आज मीडिया को भी कहा जाता है कि उसमें हिम्मत नहीं है लिखने की. इंडिया में रहकर ही बोल रहे हैं कि हिम्मत नहीं है लिखने की. कुछ लोग आज आरोप लगा रहे हैं कि मीडिया बिक गई है. ये जो कहते हैं, वो फ्रीडम ऑफ स्पीच नहीं है तो और क्या है… ये इंडिया के बाहर एक नैरेटिव बनाया जा रहा है. दुर्भाग्य से सबसे ज्यादा नैरेटिव इंडिया से ही बनाया जा रहा है.

आपने एक पॉइंट उठाया था कि संवैधानिक संस्थाओं को सोशल मीडिया पर बातें नहीं करनी चाहिए. इसपर आप खुद भी दिल्ली अध्यादेश को लेकर एक पीआईएल लाने की बात कर रहे थे. न्यायपालिका के संदर्भ में सार्वजनिक शोर और अवधारणा का असर न पड़ जाए? इस बारे में आपकी राय?

अव्वल तो किसी और देश में यह समस्या नहीं है. ज्यूडिशियरी का काम ऐसा है कि जिसमें वो उस पेस में ही नहीं आती, जहां हर दिन की कंट्रोवर्सी हो. हमारे देश में यह समस्या इसलिए आती है क्योंकि पीआईएल वगैरह दाखिल होती रहती हैं. आज सोशल मीडिया के जरिए हर इंसान पब्लिशर बन गया है. ट्वीट, रीट्वीट वगैह देकर. बेशक आप पर्सनली लिखिए. लेकिन आप मीडियाबाजी शुरू कर देते हैं. आज मैं देखता हूं कि संसद के सदस्य एक दूसरे के बारे में जिस किस्म की फालतू चीज लिखते हैं. सांसद सोशल मीडिया पर जजों के बारे में भी लिखते हैं. संसद में जब ये नियम है कि आप किसी जज के बारे में बात नहीं करेंगे और नहीं पर्सनल कमेंट करेंगे. लेकिन फिर भी ऐसा होता है. आज हमारी शब्दावली (Vocabulary) इतनी गिर चुकी है, इतनी नैगेटिव हो चुकी है कि हम कह सकते हैं कि आज हमारी सिविल सोसाइटी (सभ्य समाज) सभ्य नहीं रहा. एक सोच ये भी है कि आप जितनी खराब भाषा का इस्तेमाल करेंगे, लोग आपको उतना ही ज्यादा सुनेंगे या पढ़ेंगे. दूसरी चीज वॉट्सऐप यूनिवर्सिटी है. ये वॉट्सऐप यूनिवर्सिटी तो सबसे ज्यादा खतरनाक है.

हाल ही में एक मामला आया था, जिसमें राहुल गांधी ने कुछ बयान दे दिया और उन्हें दो साल की सजा हुई. सांसदी भी चली गई. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने सजा पर स्टे लगा दिया. जिसके बाद राहुल गांधी की सांसदी बहाल हो गई. हालांकि, कोर्ट ने केस के कॉन्टेंट या मेरिट पर कुछ नहीं कहा. लेकिन राहुल गांधी को संयम बरतने की सलाह दी है. इस पूरे मामले पर आपकी क्या राय है?

ये बात बहुत अहम है. इसके लिए सजा होनी चाहिए या नहीं होनी चाहिए…. ये बाद का विषय है. मुद्दा ये है कि इतनी बदतमीजी से आप बात कर रहे हैं. आप लोगों पर झूठे आरोप लगा रहे हैं. उसके बाद आप कहते हैं कि आप सार्वजनिक जीवन में हैं. वो कितना ही इनकार करें, लेकिन ये सबको मालूम है कि राहुल गांधी रोज रात को सोते हैं, तो पीएम बनने का सपना देखते हैं. आप पीएम बनने का सपना देखते हैं और आपकी भाषा ऐसी है. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि आपने जो कहा वो गलत कहा. आपको वैसा बयान नहीं देना चाहिए था.


 

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